रामगढ़ पर्वत के मामले में भारत सरकार के पर्यावरण वन मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को जांच का निर्देश दिया…

Vartaman sandesh
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छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने पत्र लिखकर अवगत कराया था…

अम्बिकापुर/ छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव द्वारा सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में स्थित ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल रामगढ़ को बचाने की मुहिम के तहत भारत सरकार के पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग को लिखे पत्र के माध्य से विभाग द्वारा सकारात्मक पहल की गई है. बता दें कि उदयपुर ब्लॉक में स्थित रामगढ़ की पहाड़ी को उस क्षेत्र में लगातार बढ़ते जा रहे कोल खदानों से खतरा उत्पन्न हो गया. पूर्व में चल रहे कोल खदान के कारण यह पहाड़ जहां हिलता है और कई जगह चट्टानों में दरार आ चुकी है.इस स्थल के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीराम वनवास के दौरान कुछ दिन यहां निवास किये थे, जहां पर काफी पुराना श्रीराम जानकी मंदिर स्थित है और पहाड़ के निचले हिस्से में विश्व की प्राचीनतम नाट्य शाला भी है। आसपास के क्षेत्र में हो रहे कोल खनन के कारण लगातार यहां उत्पन्न हो रहे स्थिति को लेकर वहां के आमजन भी चिंतिंत है।

टी.एस. सिंह देव ने लिखा था पत्र

पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने रामगढ़ की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसके संरक्षण व संवर्धन सहित इसके आसपास के क्षेत्रों में अन्य कोल खदान नहीं खोले जाने सहित पुरातात्विक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण हेतु भारत सरकार के पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग को पत्र लिख कर पहल करने का आग्रह किया था। पत्र का हवाला देते हुए मंत्रालय ने छ0ग0 सरकार के वन विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिख कर रामगढ़ पहाड़ के मामले मे जांच कर न्यायोचित कार्यवाही करते हुए कारवाई करने एवं मंत्रालय को सूचित करने हेतु निर्देशित किया है।

2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने लगायी थी रोक

यदि हम इस विषय पर आगे देखें तो पायेंगे कि 24 मार्च 2014 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने 23 जून 2011 के ऑर्डर को रद करते हुए खदान को रोका और केंद्र पर्यावरण मंत्रालय को वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और आई.सी.एफ.आर.ई. देहरादून के माध्यम से खदान क्षेत्र का जैव विविधता मूल्यांकन अध्ययन करवाने को कहाँ था। किन्तु 2014 में हुए आदेश पर जनवरी 2019 तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।

छ0ग0 में 2018 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद 29 जनवरी 2019 को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और आई.सी.एफ.आर.ई. देहरादून के माध्यम से खदान क्षेत्र का जैव विविधता मूल्यांकन अध्ययन को शुरू करवाया।

वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने नो-गो(खननविहीन) क्षेत्र घोषित किया

08 अक्टूबर 2021 को वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने अपने रिर्पाेट में साफ़ लिखा की पूर्व से संचालित खदान क्रमांक 14 (पीईकेबी) जिसमे खुदाई हो चुकी है, के अतिरिक्त सभी खदानों को नो-गो(खननविहीन) क्षेत्र रखा जाए और कोई नई खदान ना खोली जाए। किन्तु 02 अगस्त 2024 को नई खदान क्रमांक 12 (केते एक्सटेंशन) हेतु केंद्र सरकार द्वारा जन सुनवाई की करवाई की गई, जिसमे 1500 से अधिक आपत्तियां दर्ज हुई हैं। 26 जून 2025 को नई खदान क्रमांक 12 (केते एक्सटेंशन) वन भूमि डाइवर्सन हेतु सरगुजा वनमंडल अधिकारी द्वारा स्थल निरीक्षण प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमे खदान के 10 वर्ग किलोमीटर के अंतर्गत रामगढ़ स्थित श्री राम माता सीता के मंदिर का अपने रिपोर्ट में कहीं उल्लेख्य ही नहीं किया। इस रिपोर्ट में वर्तमान में संचालित खदान क्रमांक 14 (पीईकेबी) के विस्फोट के कारण रामगढ़ पहाड़ में उत्पन्न दरारों का भी उल्लेख नहीं किया गया। कोल खनन का रामगढ़ पहाड़ पर क्या प्रभाव होता है, इस पर कोई अध्यन ही नहीं किया गया है। वहीं यदि इस मामले में स्थानीय भूविज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है की रामगढ़ की जो बनावट है, उस पर पास में होने वाले खनन का दुष्प्रभाव पड़ेगा और पहाड़ के गिरने की संभावना है।

खनन से मानव हाथी संघर्ष का समाधान असंभव

मार्च 2025 में प्रोजेक्ट एलीफेंट, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली और वाइललाइफ इंसीटूट ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित शोध में जिसका शीर्षक है “एलीफेंट ह्यूमन कॉनफिल्ट इन द स्टेट ऑफ छत्तीसगढ़, इंडिया 2000-2023 से जानकारी मिलती है कि वर्ष 2000 से 2023 के बीच, हाथी मानव संघर्ष के कारण, कुल 737 मनुष्यों की मृत्यु हुई और 91 मनुष्य घायल हुए हैं। इस रिपोर्ट की विशेषता यह भी है कि 23 वर्षों में कुल 737 लोगों की मृत्यु में से 500 अर्थात् 68 प्रतिशत से अधिक मृत्यु केवल वर्ष 2014 से 2023 के बीच हुई है। साथ ही 737 लोगों में से लगभग 550 अर्थात 75 प्रतिशत मृत्यु केवल उत्तरी छत्तीसगढ़ में हुई है। एक संयोग की बात यह भी है की हसदेव एरिया कोल फिल्ड क्षेत्र में खनन वर्ष 2014 मे प्रारंभ हुआ था।

साथ ही वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने यह भी कहा है कि “यदि इस परिदृश्य में हाथियों के प्राकृतिक एवं सुरक्षित आवासों पर आगे कोई और खतरा उत्पन्न होता है, तो मानव-हाथी संघर्ष राज्य के अन्य नए क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित हो सकता है, जहाँ इस संघर्ष का समाधान करना राज्य के लिए असंभव हो जाएगा.

खनन रोकने 2022 में विधान सभा प्रस्ताव पारित

वहीं इस पुरे मामले में हसदेव कोल एरिया के क्षेत्र को लेकर एक सच्चाई यह भी है कि 26 जुलाई 2022 में छत्तीसगढ़ विधान सभा में एक प्रस्ताव सर्व सहमति से पारित किया गया की हसदेव क्षेत्र के सभी आवंटित कोयला खदानों का आवंटन रद्द किया जाये। इस प्रस्ताव का समर्थन कांग्रेस और भाजपा के सभी विधायकों ने किया। जिसमें वर्तमान भाजपा के जांचदल संयोजक शिवरतन शर्मा भी थे। 16 जुलाई 2023 को छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने पीसीसीएफ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया की वर्तमान संचालित खदान क्रमांक 15 (पीईकेबी) में इतना कोयला है की वह राजस्थान के पॉवर प्लांट को 20 वर्ष तक कोयला उपलब्ध करा सकती है और इस बात को ध्यान में रखते हुए हसदेव क्षेत्र में अन्य कोई नई खदान ना खोली जाए।

5 लाख से अधिक पेड़ काटे जाने है

ऐसी स्थिति में विधानसभा में सर्वसहमति से पारित प्रस्ताव के इतर खदान क्रमांक 12 (कते-एकटेशन कोल बॉक) की 1760 हेक्टर भूमि में से 1742.155 हेक्टर, जो कुल खदान का 99 प्रतिशत है वह घना वन है और इस क्षेत्र में लगभग साढ़े चाल लाख बड़ वृक्षों और लाखों छोटे पेड़ों की कटाई होनी है। प्रर्यावरण के इस नुक़सान की भरपाई करना असंभव होगा।ऐसे में छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव के बाद भारत सरकार के पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग द्वारा जारी पत्र से अभी भी एक मौका है कि रामगढ़ क्षेत्र को खदान से हो रहे नुकसान का सही आंकलन एवं परीक्षण हो ताकि सरगुजा की ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल रामगढ़ का संरक्षण एवं संवर्धन हो सके।

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